कबीरदास का जीवन परिचय / Kabirdas Biography In Hindi -
महाकवि कबीरदास का जन्म सन 1398 ई० में मन जाता है .कबीरदास भक्ति - काल के निर्गुण काव्य धारा के ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि है .ऐसा मन जाता है कि काशी में किसी विधवा ब्राह्मणी ने गुरु रामानंद जी के आशीर्वाद से इन्हें जन्म दिया .विधवा होने के कारण वह इन्हें अपना न सकी और इन्हें लहरतारा नामक नदी के किनारे छोड़ दिया . नीरू और नीमा के एक जुलाहादम्पति ने इन्हें वहां से जाते से जाते हुए देखा वह निसंतान थे इसलिए ख़ुशी इन्हें भगवन का प्रसाद समझकर इन्हें लगाये और इनकी परवरिश की .
जन -श्रुतियो के अनुसार इनका विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ .जिनसे इनके दो संताने हुई इनके पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था इन्होने अपने जीवन का अधिकांश समय काशी में ही व्यतीत किया . उस समय ऐसी मान्यता थी की काशी मे मारने से सवर्ग प्राप्त होता है और मगहर में मरने से नरक नरक प्राप्त होता है , लोगो केमन की इस भ्रान्ति को दूर करने के लिए इन्होने जब अपना अंतिम समय निकट जाना ,तब ये मगहर चले गए . वहां सन 1518 ई० में माघ महीने की शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को इनका देहावसान माना जाता है .
इनकी म्रत्यु के उपरांत हिदू व मुस्लिम दोनों ही अपनी -अपनी रीती -रिवाजो से इनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे ,जन -श्रुति के अनुसार मन जाता है की जब शव पर से चादर हटाई गई ,तब वहां शव के स्थान पर पुष्प मिले दोनों संप्रदाय के लोगो ने फुलो को आधा -आधा बाँट लिया और अपनी -अपनी रीती से उनका अंतिम संस्कार किया .
कबीरदास के गुरु स्वामी रामानंद थे ', परन्तु जन -श्रुतियो के अनुसार ये शूफी संत शेख तकी के शिष्य मने जाते है .ये पड़े लिखे नहीं थे , गुरु रामानंद जी ने इनमे काव्य प्रतिभा जाग्रत की .कबीरदास जी ने अपने विषय में स्वयं कहा है -
मसि कागद छुओं नहीं ,कलम गह्यो नहिं हाथ.
इस कथन से इस तथ्य के प्रमाणिकता स्वयं सिद्ध हो जाती है की इन्होने अपनी वाणी को लिपिबद्ध नहीं किया तथा अनपढ़ होते हुए भी ये समाज -सुधारक ,पाखंड के आलोचक ,उत्कृष्ट रहस्यवादी तथा मानवता की भावनाओ से युक्त है ,इनकी रचनाओं से ऐसा स्पष्ट है .इन्होने अपनी रचनाओ में माला जपना ,नमाज पढ़ना ,मूर्ती पूजा आदी बही आडम्बरों की घोर निंदा की है तथा सत्य के लिए प्रेम ,इन्द्रिय निग्रह ,सदाचार ,सत्संग ,गुरु महिमा और ईस्वर की भक्ति के और ध्यान आकृष्ट किया है .कर्मकांडो व बाह्य -आडम्बरो का विरोध हुए कबीरदास जी कहते है -
कांकर- पाथर जोरि कै , मस्जिद लई चीनाय .
ता छड़ी मुल्ला बांग दे ,क्या बहिरा हुआ खुदाय ..
कबीर दास की प्रमुख रचनाएँ-
(1) साखी - साखी शब्द तत्सम शब्द साक्षी का तदभाव रूप है , इनमे इनके धार्मिक उपदेश संगृहीत है .यह दोहा छन्द में लिखा गया है .
(2) सबद - सबद संगेतात्मक से युक्त गेयपद है , इसमें कबीर के अलोकीक-प्रेम व आध्यात्मिकता के भाव मुखरित हुए है .
(3) रमैनी - इसमें कबीरदास के दार्शनिक व रहस्यवादी विचार मुखरित हुए हैं . यह चौपाई छन्द में रचित है .
भाषा -
कबीरदास पढ़े-लिखें नहीं थे, इन्हें जो भे शब्द मिलता उसी का प्रयोग कर लेते थे .इनके भाषा में अरबी ,भोजपुरी ,बुन्देलखण्डी ,ब्रज व खडी बोली आदी विभिन्न भाषाओ के शब्दों का समावेश है. अत: इनकी भाषा सधुक्कडी व पंचमेल खिचड़ी कही जाती है .
शैली -
इनकी शैली भावात्मक व व्यंगात्मक है.कबीर के काव्य में अनुप्रास ,रूपक ,दृष्टान्त ,अतिशयोक्ती ,व उपमा आदी अलंकारों का प्रयोग हुआ है .आशा करते है हमारे द्वरा दी गयी " कबीरदास का जीवन परिचय , Kabirdas Biography In Hindi " की जानकारी आपको अच्छी लगी होगी . इस विषय से जुड़ा कोई भी प्रश्न पूछने के लिए कमेंट करे .और इस पोस्ट को हो सके तो शेयर जरूर करे .
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